भारत में कई प्रकार के म्यूचुअल फंड्स हैं जिन्हें निवेश शैली, जोखिम लेने की क्षमता, लक्ष्यों इत्यादि के हिसाब से वर्गीकृत किया जा सकता है. भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) म्यूचुअल फंड्स को मोटे तौर पर पांच प्रकार में वर्गीकृत करता है. इनमें इक्विटी स्कीम, डेट स्कीम, हाइब्रिड स्कीम, रिटायरमेंट और बच्चों के लिए सॉल्यूशन-ओरिएंटेड स्कीम और इंडेक्स फंड्स, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स (ईटीएफ) और फंड ऑफ फंड्स जैसी अन्य स्कीम्स. इस गाइड में आप पहली कैटेगरी के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि आखिर इक्विटी फंड क्या होता है, इसके कितने प्रकार होते हैं, इसके क्या-क्या फायदे हैं साथ ही अन्य विवरण.
क्या इससे जिंदगी काफी आसान नहीं हो जाती है जब आप बिना बहुत अधिक समय खर्च किए बगैर या मार्केट की पर्याप्त जानकारी के बिना अलग-अलग शेयरों में निवेश कर पाते हैं. आपको इसलिए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए. ये स्कीम अन्य कंपनियों के शेयरों में पैसे लगाती हैं. और सबसे अच्छी बात ये है कि ये कंपनियां विभिन्न सेक्टर्स, थीम, मार्केट कैपिटलाइजेशन इत्यादि से जुड़ी हुई होती हैं. इस तरह इक्विटी म्यूचुअल फंड्स आपको काफी विविधीकरण का मौका देते हैं और पूंज में वृद्धि और धन सृजन के जरिए आपकी मदद करते हैं. हां, इस तरह के फंड्स में अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा जोखिम होता है लेकिन अन्य इंस्ट्रुमेंट्स की तुलना में रिटर्न प्राप्त करने की संभावनाएं भी अधिक होती हैं.
आपको निवेश से जुड़ा बेहतर निर्णय लेने में मदद करने के लिए सेबी ने मार्केट कैपिटलाइजेशन और अन्य मानदंडों के हिसाब से इक्विटी फंड्स को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है. मार्केट कैपिटलाइजेशन का मतलब कंपनी के आउंटस्टैंडिंग शेयरों के बाजार मूल्य से है. मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से आप कंपनियों को तीन प्रकार में बांटते हैं- लार्ज-कैप, मिड-कैप और स्मॉल कैप. लॉर्ज-कैप कंपनियों में स्टॉक मार्केट में लिस्टेड शीर्ष 100 कंपनियां शामिल होती हैं. मिड-कैप कंपनियां इस मामले में दूसरे स्थान पर आती हैं और 101 से 250 तक की रैंकिंग वाले शेयरों को इसमें शामिल किया जाता है. 251 से अधिक रैंकिंग वाली कंपनियों को स्मॉल-कैप कंपनियों में शामिल किया जाता है. हालांकि, इक्विटी उच्च जोखिम वाला निवेश विकल्प है लेकिन इसमें शामिल रिस्क अलग-अलग होता है. उदाहरण के लिए, इन तीनों में से लार्ज कै स्टॉक को सबसे कम जोखिम वाला और स्मॉल-कैप स्टॉक्स को सबसे ज्यादा जोखिम वाला माना जाता है.
मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से अलग-अलग इक्विटी म्यूचुअल फंड्स इस प्रकार हैं:
सेबी ने इक्विटी म्यूचुअल फंड्स को भी कुछ इस प्रकार वर्गीकृत किया है:
किसी भी अन्य म्यूचुअल फंड की तरह इक्विटी फंड्स भी अलग-अलग निवेशकों से पैसे जमा करते हैं और मुख्य रूप से स्टॉक मार्केट में लगाते हैं. इक्विटी फंड्स मुख्य रूप से इक्विटी या इक्विटी से जुड़ी सिक्योरिटीज में पैसे लगाते हैं, जिनमें से कम-से-कम 65 फीसदी रकम को शेयरों में लगाया जाता है. बाकी पैसों को डेट सिक्योरिटीज या मनी मार्केट इंस्ट्रुमेंट्स में लगाया जाता है. आप सिस्टेमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) या एकमुश्त के जरिए इक्विटी फंड्स में निवेश कर सकते हैं. एसआईपी के जरिए आपको अपनी पसंद की म्यूचुअल फंड स्कीम में थोड़ा-थोड़ा लेकिन साप्ताहिक, मासिक और सालाना इंस्टॉलमेंट में लगातार निवेश करने की सुविधा मिल जाती है. इसे बेहतर तरीके से प्लान करने के लिए आप एसआईपी रिटर्न कैलकुलेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं. दूसरी ओर, जब आपके पास सरप्लस रकम आए तो आप एकमुश्त निवेश कर सकते हैं.
एक साल या उससे कम अवधि के इक्विटी फंड्स पर होने वाले फायदे पर 15 फीसदी का शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स देना होता है. एक साल से अधिक समय तक इक्विटी फंड्स में निवेश से होने वाले फायदे पर 10 फीसदी लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स देय होता है. हालांकि, एक लाख रुपये प्रति वर्ष तक के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन पर कोई टैक्स नहीं देय होता है.
इक्विटी फंड क्या होता है के बाद आम तौर पर अगला सवाल ये होता है कि आपको इसमें इंवेस्ट करना चाहिए या नहीं. इक्विटी फंड्स लंबी अवधि के लक्ष्य के लिए उपयुक्त होते हैं और लंबी अवधि के निवेश पर महंगाई को मात देने वाला रिटर्न देते हैं. हालांकि, इनमें जोखिम अधिक होता है. अगर आप अधिक जोखिम सह सकते हैं और लंबी अवधि की निवेश की संभावनाएं तलाश रहे हैं तो इसमें निवेश के बारे में सोच सकते हैं. इन फंड्स में निवेश की एक और वजह टैक्स बचाना है. ऐसे में अगर आप टैक्स बचाने की ओर देख रहे हैं तो आप ईएलएसएस में निवेश कर सकते हैं.
इक्विटी फंड्स लंबी अवधि में पूंजी में वृद्धि में मददगार साबित हो सकते हैं. ऐसे में अपने लक्ष्य के हिसाब से उचित स्कीम का चुनाव अहम होता है. चूंकि, इनमें जोखिम थोड़ा अधिक होता है, इसलिए थोड़ा रिसर्च करने के बाद ही अपनी जरूरत के हिसाब से उपयुक्त म्यूचुअल फंड स्कीम का चुनाव करना चाहिए.
निवेशकों को जागरूक करने की एडलवाइज म्यूचुअल फंड की पहल.
सभी म्यूचुअल फंड निवेशकों को एक बार केवाईसी प्रोसेस को पूरा करना होता है. निवेशकों को केवल रजिस्टर्ड म्यूचुअल फंड (आरएमएफ) के साथ डील करनी चाहिए. केवाईसी, आरएमएफ से जुड़ी अधिक जानकारी और किसी भी तरह की शिकायत दर्ज कराने का प्रोसेस जानने के लिए विजिट करेंः
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म्यूचुअल फंड निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. कृपया निवेश करने से पहले सभी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ें.
MUTUAL FUND INVESTMENTS ARE SUBJECT TO MARKET RISKS, READ ALL SCHEME RELATED DOCUMENTS CAREFULLY.